लखनऊ: वेस्ट यूपी में मंगलवार को झमाझम बारिश हुई थी जिससे लोगों को भीषण गर्मी से काफी राहत मिली। वहीं, दूसरी तरफ प्रदेश के 68 जिले बारिश न होने के कारण बुरी तरह प्रभावित हुए हैं। वेस्ट यूपी में मंगलवार को झमाझम बारिश हुई जिससे लोगों को भीषण गर्मी से काफी राहत मिली। सुबह से छाए काले बादल धीरे-धीरे बारिश में बदल गए और तेज झमाझम बारिश शुरू हो गई। इस बारिश से जिससे मेरठ समेत सभी जिलों में लोगों ने गर्मी से राहत महसूस की है। वहीं, दूसरी तरफ प्रदेश के 68 जिले बारिश न होने के कारण बुरी तरह प्रभावित हुए हैं। इसके कारण इस बार खरीफ की फसलों की बोआई और धान की रोपाई लगातार प्रभावित हो रही है।
मौसम विभाग के निदेशक जेपी गुप्ता ने बताया कि फिलहाल उत्तर प्रदेश में मानसून की सामान्य बारिश होने के अभी करीब एक हफ्ते तक आसार नहीं हैं। हालांकि कुछ इलाकों में छिटपुट बारिश हो सकती है। आंचलिक मौसम विज्ञान केन्द्र से मिली जानकारी के अनुसार सोमवार की शाम साढ़े पांच बजे से मंगलवार की सुबह तक बरेली में 7 सेंटीमीटर बारिश रिकॉर्ड की गई। इसके अलावा हापुड़, पीलीभीत में 6-6, झांसी में चार, बिजनौर और मथुरा में 2-2 तथा मथुरा और मेरठ में 1-1 सेंटीमीटर बारिश हुई।
प्रदेश में अबतक महज 35 फीसदी बारिश
उत्तर प्रदेश में 29 जून को सोनभद्र के रास्ते दाखिल हुए मानसून ने अब तक राज्य में सामान्य वर्षा के मुकाबले महज 35.08 प्रतिशत बारिश दी है। प्रदेश के 48 जिलों में अब तक छिटपुट यानी सामान्य से 40 प्रतिशत से भी कम और 20 जिलों में कम बारिश यानी 40 से 60 प्रतिशत के बीच बारिश हुई है। इस वजह से इस बार खरीफ की फसलों की बोआई और धान की रोपाई लगातार प्रभावित हो रही है। अब तक महज 28 फीसदी ही रोपाई व बोआई हो पाई है।
फसल बचाना हो रहा मुश्किल
कृषि विभाग के आंकड़ों के अनुसार पिछले साल चार लाख हेक्टेयर में धान की नर्सरी लगाई गई थी। इस बार 3 लाख 93 हजार हेक्टेयर का लक्ष्य था और 3 लाख 88 हजार हेक्टेयर में धान की नर्सरी लगी। मगर इस बार 59 लाख हेक्टेयर के कुल निर्धारित रकबे में से महज 16 लाख 02 हेक्टेयर में ही रोपाई हो पाई है। जो किसान निजी नलकूप या पम्पसेट के जरिये धान की रोपाई करने में सफल हो भी गए हैं, उन्हें भी अब फसल को बचाने के लिए धान के खेत को पानी से लबालब भरने के लिए अपेक्षाकृत ज्यादा अवधि तक नलकूप या पम्पसेट चलाना पड़ रहा है। इसकी वजह से उनकी लागत बढ़ती जा रही है। जिन किसानों के पास ऐसे संसाधान नहीं हैं वह तो अब धान की नर्सरी लगाने के बाद उसकी रोपाई की हिम्मत ही नहीं जुटा पा रहे हैं।
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