रिपोट राजकुमार मौर्य बहराइच
बहराइच। अगर आप बिशेश्वरगंज-इकौना रोड से कुरसहा जाने की सोच रहे हैं, तो जरा ठहरिए! यह सड़क नहीं, बल्कि मौत का न्यौता है। पिछले दस सालों से इस पर न जाने कितनी आत्माएं 'अकाल' मृत्यु का शिकार हो चुकी हैं और प्रशासन है कि कुंभकर्णी नींद से जागने को तैयार ही नहीं। ग्रामीणों के मुताबिक, यह रास्ता 'सड़क कम, गड्ढों का म्यूजियम' ज्यादा लगता है – वो म्यूजियम, जहां हर गड्ढा एक नई दुर्घटना की कहानी बयां करता है! जब सड़क बन गई 'मौत का कुआं' स्थानीय लोगों का कहना है कि करीब एक दशक पहले इस सड़क पर 'दिखावे की मरम्मत' का स्वांग रचा गया था। कुछ लीपापोती हुई, तस्वीरें खिंचीं और फिर अधिकारी ऐसे गायब हुए, मानो गधे के सर से सींग। तब से आज तक किसी माई-बाप ने इस सड़क की सुध नहीं ली। अब आलम यह है कि हर दूसरे दिन यहां गाड़ियां पलटती हैं, बाइक सवार उड़ते हैं और चार-पहिया वाहन भी औंधे मुंह गिरते हैं। ये तो शुक्र है कि अब तक कोई बड़ी अनहोनी नहीं हुई, वरना न जाने कितने परिवार उजड़ जाते। बारिश में 'नर्क का द्वार': पानी भरा गड्ढा, मौत का फंदा! बारिश के दिनों में तो स्थिति और भी भयावह हो जाती है। गड्ढों में पानी ऐसे भर जाता है, जैसे किसी ने 'मौत का कुआं' बना दिया हो। आप पैदल चल रहे हों या गाड़ी चला रहे हों, आपको पता ही नहीं चलेगा कि आप गड्ढे में घुस रहे हैं या किसी दलदल में! "सरकार गड्ढा मुक्त सड़कों का दावा करती है, लेकिन हमारी सड़क देखकर लगता है जैसे इस योजना का
मजाक उड़ाया जा रहा है," एक ग्रामीण ने गुस्से में कहा। आश्वासन की घुट्टी और आंदोलन की धमकी ग्रामीण विनय पाठक, प्रदीप त्रिपाठी, रामाशंकर पाठक और दर्जनों अन्य लोगों ने कई बार 'साहबों' के दरवाजे खटखटाए, लेकिन हर बार उन्हें 'मीठे-मीठे आश्वासनों' की घुट्टी पिलाकर टरका दिया गया। अब ग्रामीणों का सब्र जवाब दे गया है। उन्होंने साफ चेतावनी दी है कि अगर जल्द ही सड़क की मरम्मत नहीं हुई, तो वे सड़क पर उतरकर ऐसा आंदोलन करेंगे कि सरकारी मशीनरी को अपनी जड़ें हिलती हुई महसूस होंगी। क्या प्रशासन किसी बड़ी दुर्घटना का इंतजार कर रहा है। यह सवाल बड़ा है: क्या सरकारी अधिकारी किसी बड़े हादसे का इंतजार कर रहे हैं? क्या तब तक उन्हें चैन नहीं मिलेगा, जब तक कोई बड़ी जानलेवा घटना नहीं घट जाती? बहराइच की यह 'मौत की सड़क' सिर्फ एक रास्ता नहीं, बल्कि प्रशासन की लापरवाही और जनता की अनदेखी का जीता-जागता सबूत है। अब देखना यह होगा कि यह 'लापरवाह मशीनरी' कब जागेगी, या फिर एक और दुर्घटना की भेंट चढ़ने का इंतजार करेगी।
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